दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि बायो-गैस का उत्पादन के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
बायो-गैस का उत्पादन
बायो-गैस एक सस्ता सुविधाजनक एवं निर्धूम ईंधन है जो पशु व मानव के मल-मूत्र एवं अन्य कार्बनिक पदार्थों को बंद वातावरण में सड़ाने या किण्वन करने से बनता है। बायो-गैस संयंत्र में प्रतिदिन गोबर एवं पानी का मिश्रण जिसे स्लरी कहते हैं, बनाकर डाली जाती है, जिसका वायु की अनुपस्थिति में किण्वन होता है। इस प्रक्रिया में हमें मीथेन, कार्बनडाइऑक्साइड तथा अल्पमात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड तथा अन्य गैसों का मिश्रण प्राप्त होता है जो बायो-गैस कहलाती है। इस गैस के मिश्रण में केवल मीथेन ही ज्वलनशील है।
यही गैस जलाने, पकाने, रोशनी के लिए एवं ईंधन के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। गैस बनने के बाद बनी स्लरी जैव खाद के रूप में प्राप्त होती है।
बायो-गैस के उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक
- pH का प्रभाव-सूक्ष्म जीवाणुओं की प्रक्रिया के लिए वातावरण उदासीन व क्षारीय होना चाहिए। अतः pH 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए। यदि pH कम या अधिक हो तो गैस उत्पादन में कमी आ सकती है। इसी कारण पानी व गोबर का अनुपात 1:1 होना चाहिए।
- तापमान-बायो-गैस उत्पादन के लिए तापमान 35°C से 38°C तक ठीक रहता है। इस तापमान पर अधिक गैस उत्पादन होता है। 20°C-35°C – तापमान पर मीथेन कम मात्रा में बनती है। 10°C पर इसका production – लगभग बंद हो जाता है।
- हवा और ऑक्सीजन-कोयेजोनिक जीवाणु ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही कार्य करते हैं और किण्वन क्रिया पूरी करते है। हवा और ऑक्सीजन की उपस्थिति में गैस कम मात्रा में प्राप्त होती है।
- कार्बन व नाइट्रोजन अनुपात-यदि स्लरी में कार्बन व नाइट्रोजन का अनुपात 25 : 1 से 30:1 तक हो तो अधिक गैस बनती है, क्योंकि कार्बन को जीवाणु 30 गुना अधिक काम में लेते हैं।
यदि कार्बन की मात्रा बढ़ा दें तो अधिक CO, मिलेगी तथा यदि नाइट्रोजन की प्रतिशत मात्रा बढ़ा दें तो अमोनिया अधिक बनेगी।
- कार्बनिक पदार्थों की प्रकृति-यदि पदार्थ में पोषक तत्व सेलुलोज़, हेमीसेलुलोज़ और प्रोटीन अधिक मात्रा में हों तो गैस अधिक मात्रा में बनेगी। तरल पदार्थ से गैस कम मात्रा में उत्पन्न होती है जबकि जटिल कार्बनिक वनस्पति से अधिक गैस उत्पन्न होती है। उपर्युक्त पोषक तत्व जीवाणुओं की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।
- हानिकारक पदार्थ- किण्वन की प्रक्रिया में मिश्रण के साथ आने वाले पदार्थ हानिकारक होते हैं जिनके प्रभाव से जीवाणु मर जाते हैं और गैस का उत्पादन भी कम हो जाता है। ये पदार्थ सल्फेट, ताम्बा, सोडियम, NaCl, अमोनिया आदि हैं।
- ठोस पदार्थ-गोबर में पानी 1:1 के अनुपात या बराबर मात्रा में मिलाया जाता है। पानी मिलाने पर जो घोल बनता है, वह बहने लायक होता है और जीवाणुओं की गति बनी रहती है। यदि ठोस की मात्रा ज्यादा होगी तो स्लरी का बहाव रूक जाएगा और बायो-गैस उत्पादन के लिए जीवाणुओं को उचित माध्यम नहीं मिलेगा।
- दाब-अनुसंधान प्रयोगशालाओं के कार्यों से परिणाम मिलता ही कि किण्वन क्रिया पर दाब का प्रभाव होता है। स्लरी की सतह पर कम दाब ठीक रहता है।
बायो गैस के लाभ
बायो गैस के लाभ निम्न हैं-
(i) इसमें गोबर का उपयोग होने से, सड़कों पर गोबर नहीं फैलाया जाता जिससे वातावरण स्वच्छ, बदबू रहित रहता है।
(ii) इस गैस से धुआं या प्रदूषण नहीं होता तथा कोई अवशेष जैसे राख आदि नहीं बचता, साथ ही गांवों में जलाने के लिए लकड़ियां वनों से एकत्रित करने के झंझट से मुक्ति मिल जाती है जिससे वनों का काटना रूक सकता है।
(ii) बायोगैस संयंत्र से निकली खाद आसानी से मिट्टी में घुल मिल जाती है तथा भूमि की जल धारण शक्ति बढ़ती है।
आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि बायो-गैस का उत्पादन इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो