फोटोवोल्टेयिक सेल की कार्यप्रणाली समझाइये। इनसे विद्युत उत्पादन की सम्भावनाओं एवं सीमाओं को बताइये।

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे सौर प्रकाश वोल्टीय प्रणाली के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |

सौर प्रकाश वोल्टीय प्रणाली

एकल सेल से प्राप्त विद्युत की मात्रा इतनी कम होती है कि उससे कोई काम नहीं होते। अतः कई सेलों को एक साथ श्रेणीक्रम अथवा समानान्तर क्रम में रखकर जोड़ना पड़ता है। कितने सेल किस प्रकार जोड़ने हैं यह विद्युत शक्ति की आवश्यकता पर निर्भर करता है। कई सेलों को एक साथ श्रेणीक्रम में रखते हैं, इस इकाई को मोड्यूल कहते हैं। इन मोड्यूलों को समानान्तर क्रम में जोड़कर धारा और वोल्टेज का मान बढ़ाते हैं और विद्युत शक्ति बढ़ाते हैं। दो या दो से अधिक मोड्यूलों की सहायता से प्रकाश-वोल्टीय पुंज बनाए जाते हैं, ये व्यक्तिगत या समूह रूप में विद्युत शक्ति के आवश्यकतानुसार उपयोग किए जाते हैं। मोड्यूल बनाने में माड्यूलों की आवश्यकता उद्घार पर निर्भर करती है।

प्रकाश वोल्टीय मोड्यूल प्रणाली में निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है-

(i) आधार पट्टी जिस पर सौर सेलों को रखते हैं।

(ii) सम्पुटन के लिए पारदर्शी पदार्थ का ढक्कन ताकि सौर विकिरण की मात्रा अधिक से अधिक अन्दर आ सके।

(iii) बिजली के तार और उनको जोड़ने के लिए उपयुक्त बनावट, बैट्री, स्विच, नियंत्रण, इन्वर्टर आदि अन्य घटक होते हैं।

विद्युत्त उत्त्पादन के लिए प्रकाश वोल्टीय प्रणाली

(i) सौर पुंज-इसमें सौर पुंज होता है जो सूर्य ताप की उपयोगी दिष्ट धारा, विद्युत शक्ति में परिवर्तित करता है।

सौर सेलों की सामान्य प्रणालियों में स्टेण्ड एलोन सड़क रोशनी प्रणालियां, जल पम्पन प्रणालियां, घरेलु रोशनी प्रणाली, सामुदायिक टेलीविजन, केन्द्रीकृत ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए विद्युत संयंत्र और दूर-संचार प्रणालियां आदि शामिल हैं। ये प्रणालियां अभी विकसित देशों में सामान्य तथा बिना बिजली वाले गांवों में प्रारंभिक विद्युतीकरण के लिए स्थापित की जाती हैं। वे प्रकाश वोल्टीय प्रणालियां जो ग्रिड से जुड़ी हुई नहीं होती हैं एकाकी झेलन या टेक प्रणालियां कहलाती हैं। इनसे छोटे पैमाने पर बिजली की आपूर्ति की जाती है।

बिजली से संचार सुविधाएं, रोशनी सुविधाएं, टेलीविजन टीका भण्डारण, बैट्री चार्जिंग इत्यादि भी पूरी की जाती हैं। इन प्रणालियों में बैट्रियों की आवश्यकता पड़ती हैं, जो दिन में परिवर्तित सौर ऊर्जा को संग्रहित करती हैं।

ग्रिड से जुड़ी प्रकाश वोल्टीय प्रणालियों में उत्पादित बिजली को ग्रिड में प्रदाय करते हैं और उससे आवश्यकतानुसार विद्युत लेते हैं। ये प्रणालियां अधिकतर बड़ी क्षमता की होती हैं। सूदूरपूर्वी गांवों और क्षेत्रों की विद्युत की जरूरतों को पूरा करने के लिए 2-10KW क्षमता के छोटे विकेन्द्रीयकृत प्रकाश वोल्टीय विद्युत संयंत्र स्थापित किए जाते हैं।

(ii) अवरोध डायोड-ये सौर पुंज से उत्पन्न शक्ति को बैट्री या ग्रिड की तरफ जाने देता है। जब सौर विकिरण न आ रही हो उस समय विपरीत बहाव (बैट्री से सौर पुंज) को रोकता है अन्यथा बैट्री डिस्चार्ज हो जाएगी।

(iii) बैट्री संग्राहक-ये सौर विकिरण से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा को संग्रहित करती है। ये अधिकतर लेड-अम्ल बैट्रियां होती हैं। बैट्री को धूप से बचाना चाहिए जिससे बैट्री का घोल गर्मी से वाष्पीकृत न हो। जब सूर्य की रोशनी कम हो अथवा आकाश में बादल हों या बैट्री लम्बे समय तक अनुपयोगी रहती हो तो बैट्री को पूर्ण चार्ज अवस्था में रखना चाहिए। समय-समय पर बैट्री के घोल का घनत्व, सांद्रता और मात्रा की जांच करते रहना चाहिए और आवश्यकतानुसार आसवित जल डालकर घोल का स्तर बनाए रखना चाहिए।

(iv) इन्वर्टर-प्रकाश वोल्टीय मोड्यूल पुंज की सहायता से उत्पादित दिष्टधारा को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा में बदला जाता है, जिससे प्रत्यावर्ती धारा पर आधारित उपयोगों को पूरा किया जा सकता है।

(v) बैट्री और परिपथ को अलग करने वाला स्विच– बैट्री को अलग करने के लिए स्विच, ग्रिड और इन्वर्टर के बीच फ्यूज आदि का प्रावधान रखकर बचाव किया जाता है।

विद्युत उत्पादन की संभावनाएं

भारत में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं।

(a) राजस्थान के थार मरूस्थल में भारत के सबसे दक्ष सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए हैं, जिनकी क्षमता 700 से 2100 GW है।

(b) 1 मार्च, 2014 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश के नीमच जिले में भारत के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र का शुभारंभ किया।

(c) जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (JNNSM) का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2022 तक लगभग 20,000 MW सौर ऊर्जा का उत्पादन करना है।

(d) गुजरात के सौर शक्ति नीति के तहत 1000 MW सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

(e) जुलाई, 2009 में 19 बिलियन डॉलर की लागत से सौर शक्ति नीति के तहत 2020 तक 20 GW सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

(f) ग्रामीण क्षेत्रों में 66 MW क्षमता बाले संयंत्रो की बहुउद्देशीय परियोजनाएं स्थापित की गई हैं जिनसे सौर लालटेन, गलियों में प्रकाश व्यवस्था तथा सौर जल पम्प को संचालित किया जा रहा है।

विद्युत उत्पाद की सीमाएं-

(a) रात्रिकाल में विद्युत उत्पादन नहीं किया जा सकता।

(b) दिन के समय यदि आसमान में बादल घिरे हों, तब भी विद्युत उत्पादन नहीं किया जा सकता। इन कारणों से सौर ऊर्जा संयंत्र भरोसेमंद तरीका नहीं है।

(c) सिर्फ उन इलाकों में जहां सूर्य का प्रकाश वर्षभर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है, वहीं सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन संभव है।

(d) सोलर पैनल के साथ-साथ इन्वर्टर और बैट्री की भी आवश्यकता होती है ताकि D.C. करंट को A.C. करंट में परिवर्तित किया जा सके। सोलर पैनल को स्थापित करना सस्ता है, जबकि अन्य उपकरणों की लागत बहुत अधिक बढ़ जाती है।

(e) सौर ऊर्जा संयंत्र को स्थापित करने के लिए वृहद क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है, जो लंबे समय तक किसी और कार्य के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता।

(f) अन्य संयंत्रो की तुलना में ऊर्जा उत्पादन की क्षमता कम होती है।

(g) सौर ऊर्जा संयंत्र की देखभाल हेतुं अनुरक्षण लागत अधिक होती है क्योंकि ये आसानी से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे ऊपरी व्यय बढ़ जाता है।

आज आपने क्या सीखा :-

अब आप जान गए होंगे कि सौर प्रकाश वोल्टीय प्रणाली इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|

उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो

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